Asia’s tallest tree: भारत में जन्मे सिद्ध संतों और महापुरुषों की समाधि स्थल के बारे मे आपने सुना ही होगा लेकिन किसी वृक्ष की समाधि के बारे में आप शायद पहली बार सुन रहे होंगे । जी हां, यह वृक्ष कोई साधारण वृक्ष नहीं बल्कि एशिया का सबसे बड़ा चीड़ का वृक्ष है जिसकी समाधि चिपको आंदोलन की धरती कहे जाने वाले उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।
1997 में मिली थी महावृक्ष की उपाधि
उत्तरकाशी के पुरोला-त्यूनी मोटर मार्ग पर स्थित इस 208 वर्ष पुराने वृक्ष को वर्ष 1997 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने महावृक्ष घोषित किया था। वर्ष 2007 में आई आंधी में यह महावृक्ष टूट कर गिर गया था। वन विभाग ने पेड़ के तनों के साथ ही इस पेड़ के अलग-अलग हिस्सों से समाधि बना दी और वन विभाग की ओर से समाधि के आसपास इको पार्क का निर्माण भी करवाया गया है। आज भी इस चीड़ के पेड़ की समाधि को देखने भारी मात्रा में पर्यटक आते हैं।
बता दें कि टौंस वन प्रभाग पुरोला के अंर्तगत देवता रेंज में टौंस नदी के किनारे यह एशिया का सबसे ऊंचा चीड़ का पेड़ था। जिसकी ऊंचाई 60.65 मी. और उम्र 220 वर्ष बताई गई है।
Asia’s tallest tree: 4 दिन तक चला था उपचार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार महावृक्ष की समाधि के पास वन विभाग की ओर से लगाए बोर्ड में लिखा है कि वृक्ष का दो से पांच जनवरी 2007 तक उपचार किया गया था। वृक्ष जड़ से ऊपर लगभग साढ़े तीन फीट तक खोखला हो चुका था। जिसका भारतीय वन अनुसंधान संस्थान देहरादून (FRI) के पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. एएन शुक्ला के नेतृत्व में चार दिन तक उपचार किया गया था, लेकिन आठ जनवरी 2007 को आई आंधी से पेड़ गिर गया था। समाधि में रखे वृक्ष के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए साल में एक बार मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव किया जाता है।
बता दें कि उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से इस महावृक्ष की समाधि 160 किमी दूर है। हनोल स्थित महासू देवता मंदिर जाने वाले पर्यटकों के लिए यह हमेशा से ही एक आकर्षण का केंद्र बना रहता है।