शौर्य चक्र विजेता एलीट पैरा-एसएफ रेजीमेंट के जाबांज कमांडिंग ऑफिसर कर्नल नवजोत सिंह बल (Colonel Navjot Singh Bal) कैंसर से जंग जरूर हार गए, मगर आखिरी सांस तक उनका हौसला उनकी ही तरह अडिग रहा। पिछले 2 साल से कैंसर से जंग लड़ रहे पैरा एसएफ के कमांडिंग ऑफिसर ने गुरुवार को बेंगलुरु के मिलिट्री हॉस्पिटल में आखिरी सांसे ली।
मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया, कर्नल नवजोत सिंह बल ने बैंगलुरु के मिलट्री अस्पताल में अपने अंतिम समय में एक सेल्फी ली। उनकी इस तस्वीर में उनके चेहरे पर एक भी शिकंन नहीं है, बल्कि वे इसमें मुसकुराते हुए नजर आ रहे हैं।

अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी कर्नल नवजोत सिंह बल ने देशभक्ति से ओतप्रोत एक कविता लिखी। जिसमें उन्होंने अपनी सेहत का मिजाज कमजोर होने से लेकर अपने हिमालय से अडिग हौसले को बखूबी शब्दों में पिरोया। इसमें उन्होंने अपनी धर्मपत्नी आरती, दो बेटे जोरावर-सरबाज और माता-पिता को अपना आखिरी संदेश दिया। कर्नल बल की ये शौर्यगाथा हमेशा हमारे दिलों में अमर रहेगी।
मैं इस जंग में अपने पूरे सामर्थ्य से लड़ा था,
होकर मैं निडर, अडिग औ अविचल खड़ा था,
सेहत का मेरी मिजाज थोड़ा कभी कमजोर था
पर मेरा हौसला हिमालय की चट्टान से भी कड़ा था
मेरा एक हाथ भी, मेरे साथी हजारों के काम का था
मैं स्पेशल फोर्सेस कमांडो यूहीं नहीं बस नाम का था
मैं तो जिंदादिली से इस हसीन सफर को जी रहा था
मुझे कहां डर कभी, किसी भी अच्छे बुरे अंजाम का था।
जोरावर सरबाज, मेरा शौर्य बल अब से से तुम्हारी शान है
आरती, आप में ही तो ही तो बसती अब तक मेरी जान है
बीजी बाउजी, तुसी घबराना नहीं नवजोत तुआडा
अज वी जिंदा रहकर तिरंगे की सबतों ऊंची उड़ान है।
और भारत मां, आपके चरणो में चरणो में
इस सैनिक का ये ही है नमन आखरी,
ये ही अंतिम बलिदान है।
ये ही अंतिम बलिदान है।।।
~कर्नल नवजोत सिंह बल

39 वर्ष के कर्नल नवजोत सिंह बल(Colonel Navjot Singh Bal) को 2018 में कैंसर का तब पता चला जब उनकी दायीं बांह में एक गांठ पड़ गई। इसके बाद टाटा कैंसर रिसर्च सेंटर से लेकर अमेरिका तक में उनका इलाज चला। लेकिन उनके शरीर में कैंसर फैलता ही जा रहा था। जनवरी 2019 में जब हालत बिगड़ने लगी तो डॉक्टर्स को उनका हाथ काटना पड़ा। इसके बावजूद भी कर्नल बल ने अपनी आर्मी ट्रेनिंग जारी रखी। उनके साथी बताते हैं कि एक हाथ से 50 पुल-अप्स करते थे। यहां तक कि उन्होंने 21 किलोमीटर की मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया।
दिल्ली के धौलाकुंआ के आर्मी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कर्नल नवजोत सिंह बल 1998 में नेशनल डिफेंस अकैडमी में शामिल हुए। 2008 में जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा की लोलाब घाटी में अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दो आतंकियों को मौत के घाट उतारा। इस ऑपरेशन के लिए उन्हें तीसरे सबसे बड़े सैन्य पुरस्कार शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।