Bhadra Kya hai: भारतीय हिन्दू संस्कृति में भद्रा काल को अशुभ काल माना जाता है। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है। खासतौर पर भाई-बहन के पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन के समय को लेकर, हमेशा ही असमंजस की स्थिति बनी रहती है, कि आखिर किस शुभ मुहूर्त पर भाई की कलाई पर राखी बांधी जाए और भद्रा का समय काल कब का है।
लेकिन क्या कभी आपके मन में, ये सवाल आया है कि आखिर ये भद्रा क्या है ? (Bhadra Kya hai), और क्यों इस मुहूर्त में शुभ कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। क्यों किसी शुभ कार्य को करने से पहले तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण की स्थिति देखी जाती है?
Bhadra Kya hai? : भद्रा क्या है ?
तो चलिए आपको बता दें की, भद्रा माता, छाया से उत्पन्न और ग्रहों के राजा सूर्य की पुत्री और शनि देव की बहन है।
कहते हैं कि असुरों के वध के लिए भद्रा का जन्म हुआ था। मान्यताओं के अनुसार, उनका व्यक्तित्व दूसरों में भय पैदा करने वाला है। उनके शरीर का रंग काला, बड़े-बड़े दांत और लंबे बाल हैं। कहा जाता है कि, जन्म के बाद से ही वे उपद्रवी स्वभाव की थीं। उन्होंने पैदा होते ही पूरे संसार को अपना निवाला बनाने की ठान ली थी और वे ऋषि मुनियों के हवन, यज्ञ, तप और अन्य सभी मांगलिक कार्यों में भी बाधा पहुंचाने लगीं। माता भद्रा (Bhadra) के इस भयावह और विकराल रूप से देव, असुर और मानव सभी के मन में डर घर कर बैठा। जहां, मानव भद्रा के विकराल रूप से भयभीत, तो वहीं देव गण उनके इस स्वभाव के कारण काफी चिंतित रहने लगे। वहीँ, दूसरी तरफ माता छाया और पिता सूर्य भी उनके भविष्य को लेकर दुःखी रहने लगे। जिसके बाद सूर्य देव ने भगवान ब्रह्मा से भद्रा के बारे में बात की कि, आखिर उनके स्वभाव पर कैसे नियंत्रण पाया जाए। तब जाकर ब्रह्मा जी ने भद्रा माता को नियंत्रित करने के लिए उन्हें, हिंदू पंचांग में 11 करणों में सातवें करण यानी ‘विष्टी करण’ के रूप में जगह दी।
Bhadra Kya Hai? – क्या हैं हिंदू पंचाग में विष्टि करण
हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग हैं – तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। जिनमें से ‘करण’ एक महत्वपूर्ण अंग होता है और यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है, जिनको चर (या गतिशील) और अचर( या स्थिर ) में बांटा गया है। गतिशील करण में बय, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और दिष्टि आते है, जबकि अचर करण में शकुनि, चतुष्पद, नाम और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण ‘विष्टि’ का नाम ही भद्रा है। जो सदैव गतिशील रहती है और तीनो लोकों में विचरण करती रहती है। पंचांग में जब ‘विष्टि करण’ होता है तो वह ‘भद्रा काल’ होता है। जो शुभ कार्यों में विघ्न-बाधा डालता है।
वैसे तो ‘भद्रा’ ( Bhadra ) का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याण करने वाली’ लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा पाताल, स्वर्ग और पृथ्वी लोक में विचरण करती है, और सभी लोकों पर भद्रा काल का अलग असर रहता है।
कब अशुभ मानी जाती है भद्रा (Bhadra)
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी।
अर्थात् जब भद्रा स्वर्ग लोक में होगी, तो शुभ फल देगी, जब पाताल लोक में होगी तो धनलाभ कराएगी, लेकिन मृत्युलोक, यानि पृथ्वी लोक में स्थित भद्रा सब कामों को बिगाड़ने वाली होती है।
जिस दिन चन्द्रमा मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है, तो उस दिन स्वर्ग लोक की भद्रा होती है। बल्कि जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है, तो उस दिन भद्रा का निवास पाताल लोक में माना गया है। वहीं जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस अवस्था में सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। जबकि भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में हो तो शुभ कार्य हो सकते हैं।
Bhadra Kya Hai? शास्त्रों के अनुसार-
न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।
अर्थात जो व्यक्ति अपना सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहते है, तो उसे भद्रा काल में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। अगर आप अनजाने में कोई शुभ कार्य करते भी हैं तो माना जाता है की उसका फल नहीं मिलता ।
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भद्रा (Bhadra) में कर सकते हैं ये कार्य
वहीँ भद्रा में जहाँ शुभ कार्यों को करना निषेध माना गया है, वहीँ इसी भद्रा काल में कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हे आप कर सकते हैं जैसे ऑपरेशन, शत्रु दमन, युद्ध, अग्नि कार्य, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों से जुड़े कार्य और सभी अनैतिक कार्य।
क्या हैं भद्रा (Bhadra) से बचने के उपाय ?
अगर भद्रा काल में कोई कार्य कर रहे हैं, तो सुबह उठकर भद्रा के नाम इन नामों धन्या, दधमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टि, कुल पुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुर-क्षयकारी का स्मरण करें । मान्यता है की ऐसा करने से भद्रा का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता, और आपके कार्य बिना किसी अड़चन के पूरे हो जाते हैं।
भद्रा (Bhadra) काल में क्यों नहीं बांधते हैं राखी ?
भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते, जिस कारण उस काल में बहनों द्वारा भाइयों की कलाई पर राखी नहीं बाँधी जाती। वहीं मान्यता यह भी है कि, रावण की बहन सूर्पणखा ने भी रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी। जिससे उसके पुरे कुल का सर्वनाश हो गया। कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि, इस मुहूर्त में भाई की कलाई पर राखी बांधने से भाई की उम्र कम होती है।
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(इस लेख में सम्मलित कहानियां लोक मान्यताओं, दंतकथाओं और जनश्रुतियों पर आधारित है। WeUttarakhand किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।)