Ganesh Chaturthi: आखिर क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी ? क्या आप जानते हैं इसके पीछे की कहानी

आखिर क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी ? क्या आप जानते हैं इसके पीछे की कहानी

Ganesh Chaturthi: भारत में अनेकों त्यौहार मनाये जाते है और ‘गणेश चतुर्थी’ (Ganesh Chaturthi) का त्यौहार भी उनमें से एक है। गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्रपद मास की शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से इस उत्‍सव की शुरुआत होती है और ‘अनंत चतुर्दशी’ (Anant Chaturdashi) पर इसका समापन होता है। गुजरात, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, उत्‍तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्‍सों में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। तो चलिए आज आपको बताते हैं कि आख़िर क्यों मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)

दरअसल, गणेश चतुर्थी, भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों में से एक है, जो भगवान गणेश के पूजन और महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भारत के विभिन्न हिस्सों में उत्सवभर से मनाया जाता है, लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण रूप से मुंबई, महाराष्ट्र, और पुणे में उत्सवकारियों की धूमधाम से मनाया जाता है और यहां के लोगों को इस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार भी होता है।

Ganesh Chaturthi: क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी

भाद्रपद माह में आने वाली गणेश चतुर्थी का विशेष महत्त्व माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस बार गणेश चतुर्थी का त्योहार आज 19 सितंबर को मनाया जाएगा। गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन अवसर पर लोग अपने घरों में भगवान गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करते हैं और 10 दिनों तक बहुत धूमधाम से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

Ganesh Chaturthi: गणेश चतुर्थी का महत्व

भगवान गणेश, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और उनका महत्व अत्यधिक है। वे ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि, और सफलता के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है और विभिन्न कार्यों के शुरुआत में उनकी आराधना की जाती है।

शुभ आरंभ का प्रतीक: गणेश भगवान का पूजन विभिन्न कार्यों और आरंभ के पहले किया जाता है क्योंकि वे शुभ आरंभ का द्वारकं होते हैं। उनकी पूजा करने से किसी कार्य की आरंभिक चरण में सफलता प्राप्त होती है।

ज्ञान के प्रतीक: गणेश भगवान के बड़े दिमाग और विद्या का प्रतीक माने जाते हैं। उनकी पूजा से ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि होती है और शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है।

आपत्ति के नाशक: गणेश भगवान को “विघ्नहर्ता” भी कहा जाता है, क्योंकि वे सभी प्रकार की मुश्किलें और आपत्तियों को दूर करने वाले होते हैं। उनकी कृपा से आपत्तिओं का नाश होता है और साधकों को सुरक्षित रखते हैं।

कला और संगीत के प्रतीक: गणेश भगवान को कला और संगीत के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है। उनकी पूजा से कला और संगीत के क्षेत्र में योग्यता बढ़ती है और कलाकारों को सफलता प्राप्त होती है।

समृद्धि का सिंबोल: गणेश भगवान को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, और उनकी पूजा से वित्तीय समृद्धि और आर्थिक सफलता प्राप्त होती है।

Ganesh Chaturthi: गणेश चतुर्थी की कथा

गणेश चतुर्थी भगवान श्री गणेश की जन्म तिथि से जुड़ी हुई एक कथा अत्यंत लोकप्रिय है। कहा जाता है कि, एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसमें प्राण डाल कर गणेश नाम दिया। ताकि उनके द्वारा बनाया गया बालक द्वार पर पहरेदारी कर सके। माता पार्वती ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए, तो बालक ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेश जी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेशजी की गर्दन धड़ से अलग कर दी और अन्दर चले गये। जब पार्वती ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि आप मेरे पुत्र को कैसे भी कर के वापिस जीवित करें।


शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वती को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया, साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी।

गणेश विसर्जन और त्योहार का समापन

इस त्योहार के दौरान, लोग गणेश मूर्तियों की पूजा करते हैं, जिन्हें अलंकरण करके सजाते हैं। मूर्तियों की स्थापना के बाद, पूजा की विधियाँ अनुसरण की जाती हैं, जिसमें गणेश चालीसा का पाठ, आरती, और प्रसाद की वितरण शामिल होता है। गणेश चतुर्थी का उत्सव आमतौर पर 10 दिनों तक चलता है, और आखिरी दिन (अनंत चतुदर्शी) को ‘गणेश विसर्जन’ के रूप में मनाते हैं, जिसमें मूर्तियों को नदी या समुंदर में बहाया जाता है, जिसे गणेश भगवान की वापसी के रूप में माना जाता है। इस दिन लाखों लोग शोभायात्रा के साथ मूर्तियों को लेकर निकलते हैं और गणेश भगवान की आराधना करते हैं, जिसे खत्म होने पर विसर्जन किया जाता है।

कैसे हुई गणपति विर्सजन की शुरूआत

पौराणिक कथा के अनुसार, ‘महर्षि वेदव्यास‘ ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना की थी। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)के ही दिन व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी उसे लिखित रूप में करते गए। लगातार 10 दिनों तक लेखन करने के बाद गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परतें चढ़ गई थी। गणेश जी ने इस परत को साफ करने के लिए ही 10 वें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी में स्नान किया था तभी से गणेश जी को विधि-विधान से विसर्जित करने की परंपरा है।

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