कोरोना महामारी की इस जंग में अपनी जान जोखिम में डालकर फ्रंट लाइन में तैनात हमारे कोरोना वारियर ‘मेडिकल स्टाफ’ दिन-रात लोगों की सेवा में तैनात हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में युवा प्रशिक्षु डॉक्टर एक आम मजदूर की दिहाड़ी से भी कम मानदेय में काम करने को मजबूर हैं। राज्य सरकार के इस अनदेखे रवैये के चलते प्रदेश के तीनों मेडिकल कॉलेज के प्रशिक्षु डॉक्टरों ने हाथ में काली पट्टी बांधकर इसका विरोध प्रदर्शन भी किया है।
उत्तराखंड के तीन मेडिकल कॉलेज में 330 के करीब प्रशिक्षु डॉक्टर ड्यूटी पर दिन-रात तैनात हैं। जिनमें से 194 देहरादून मेडिकल कॉलेज में, 97 श्रीनगर मेडिकल कॉलेज और 99 हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में हैं।
इन युवा प्रशिक्षुओं को मानदेय के तौर पर 7500 रुपये, यानी दिन के केवल 250 रुपये मिलते हैं, जो कि पूरे भारत में केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले मेडिकल कॉलेज में से सबसे कम है। यहां तक कि पिछले करीब डेढ़ महीने से इन्हें मानदेय नही मिला है।
आपको बता दें कि BHU में मेडिकल प्रशिक्षुओं को 17,500 रुपये, तमिलनाडू और तेलंगाना में 20,000 रुपये, हरियाणा और हिमाचल में 17,000 रुपये जबकि AIIMS दिल्ली में 28,000 रुपये का मासिक मानदेय मिलता है।
12 घंटे की ड्यूटी के बाद प्रशिक्षु डॉक्टर आशीष शाह से हमारी बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि अपनी अंतिम वर्ष की परीक्षा पास करने के ठीक बाद, कोरोना महामारी के दौरान हमने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए दिन-रात पूरे मन से कोविड वार्डों और आईसीयू आदि में ड्यूटी करते हुए कभी संकोच नहीं किया और ना ही कभी करेंगे।
आशीष बताते हैं कि यह स्थिति हमारे माता-पिता के लिए तनावपूर्ण भी है, क्योंकि वह हमेशा हमारे बारे में चिंतित रहते हैं, लेकिन हमने अपने कर्तव्यों का पालन करने में कोई समस्या नहीं है। वहीं दूसरी ओर यह देखना निराशाजनक भी है कि राज्य सरकार की ओर से हमें न तो सम्मानजनक मानदेय मिल रहा है और न ही कोई प्रोत्साहन। हमें केवल 250/दिन मिलता है, जो अभी भी बकाया है और हम अभी भी आर्थिक रूप से हमारे माता-पिता पर निर्भर हैं। हम एक सम्मानजनक मानदेय चाहते हैं जैसा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य राज्यों में दिया जाता है।
उत्तराखंड में ऐसे ही कई मेडिकल प्रशिक्षु अपने परिवार से दूर ड्यूटी पर दिन रात सेवारत हैं। सरकार को इनके मानदेय बढ़ाने पर जल्द ही विचार-विमर्श कर फैसला लेना चाहिए।