Kailash Mansarovar Yatra: कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) अनेक मान्यताओं और आस्थाओं का घर है। हर साल जून से सितंबर तक दुनिया भर से बड़ी संख्या में लोग कैलाश मानसरोवर यात्रा पर निकलते हैं। हिंदू मान्यताओं में ‘मानसरोवर’ को वो झील बताया गया है जिसे भगवान ब्रह्मा ने अपने मन में बनाया था। उनकी कल्पना में यह कैलाश पर्वत के नीचे स्थित है, जो भगवान शिव का निवास स्थान है। वहीं साइंस के अनुसार कैलाश पर्वत ब्रह्मांड का केंद्र है। इस बीच कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले शिवभक्तों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। बता दें कैलाश पर्वत जाने के लिए उत्तराखंड के लिपुलेख में तैयार किया जा रहा रास्ता जल्द ही शुरू हो जाएगा।
कैलाश मानसरोवर यात्रा जो अब तक सबसे मुश्किल यात्राओं में से एक मानी जाती थी। लेकिन अब शिवभक्तों को इस मुश्किल यात्रा को पूरा करने में किसी भी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। बता दें भगवान शिव का घर माने जाने वाले कैलाश पर्वत पर जाने के लिए उत्तराखंड के लिपुलेख में तैयार किया जा रहा रास्ता जल्द ही शुरू होने वाला है। PTI (Press Trust of India) के अनुसार, इस साल सितंबर के बाद इस रास्ते को खोले जाने की उम्मीद है।अधिकारियों ने बताया कि सीमा सड़क संगठन (BRO) ने पिथौरागढ़ के नाभीढांग में KMVN हटस से भारत-चीन सीमा पर लिपुलेख दर्रे तक सड़क की कटाई का काम शुरू कर दिया है।
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अधिकारियों का कहना है कि यह काम सितंबर तक पूरा हो जाएगा। जिसके बाद शिवभक्त भारत के नए रूट से ही कैलास मानसरोवर पहुंच पाएंगे। वहीं एक महीने पहले उत्तराखंड में नया व्यू पॉइंट मिला था। पिथौरागढ़ जिले के नाभीढ़ांग के ठीक ऊपर 2 किलोमीटर ऊंची पहाड़ी से तिब्बत में मौजूद कैलाश पर्वत आसानी से दिखाई देता है।
जानिए क्या है मानसरोवर यात्रा
कैलाश पर्वत पर साक्षात भगवान शंकर विराजे हैं, जिसके ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है। मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में ‘क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्या पर विष्णु एकादशी व्रत व लक्ष्मी विराजित हों पूरे संसार को संचालित कर रहे हैं। यह क्षीर सागर विष्णु का अस्थाई निवास है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर- कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां इसकी महिमा का गुणगान किया गया है।