Raksha Bandhan: रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहनों के लिए सबसे पवित्र और पावन त्यौहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल श्रावण मास या सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का ये त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी या ‘ रक्षासूत्र ‘ बांधती हैं, और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों की रक्षा का प्रण लेते हैं।
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्योहार सदियों से लोगों के जीवन का हिस्सा रहा है। यह दिन भाई-बहन के विश्वास और स्नेह का दिन, बहन के प्रति भाई की जिम्मेदारियों का त्यौहार होता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई उस राखी के बंधन में बंधकर हर परिस्थितियों में बहन की रक्षा करने का वचन देता है।
इसलिए आज भी राखी, रक्षा सूत्र या किसी भी प्रकार की मौली को बांधने से पहले इस श्लोक का उच्चारण किया जाता है-
- येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
- तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल-माचल:।
अर्थात् जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बली को बांधा गया था, उसी रक्षा सूत्र से मैं तुम्हें बांधता-बंधती हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो या आप अपने वचन से कभी विचलित न होना।
श्रावणी मास के नाम से प्रसिद्ध यह पर्व हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भाई की कलाई पर बांधे जाने वाले इन्हीं कच्चे समझे जाने वाले धागों से पक्के रिश्ते बनते हैं। पवित्रता और स्नेह के इस सूचक को ‘गुरु महापूर्णिमा’, ‘नारियल पूर्णिमा’ और जनेऊ पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है।
लेकिन क्या आपको पता है कि, इस पवित्र पर्व का उल्लेख कई पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंगों में मिलता है। संभवतः आपने इनमें से कुछ तो सुनी भी होंगी। तो चलिए, आपको भी उन सभी किस्से-कहानियों से रूबरू करवाते हैं :-
पौराणिक प्रसंग -(Raksha Bandhan)
पुराणों के अनुसार, जब देव और दानवों में युद्ध शुरू हुआ तब देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी पत्नी इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया। उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा थी, इस रक्षासूत्र ने इंद्र की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। तभी से रक्षा के लिए कलाई पर राखी (मौली) बांधने की परम्परा शुरू हुई।
2 – पुराणों में श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी भी प्रसिद्ध है, कहते हैं जब भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था तो उस दौरान भगवान श्री कृष्ण का हाथ चोटिल हो गया था, इसके बाद द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर भगवान श्री कृष्ण के हाथ में हुए घाव पर बांधा था। उस समय भी भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को इसके बदले में रक्षा करने का वचन दिया था।
3- जब वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर भगवान् विष्णु राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। तो गुरु के मना करने पर भी राजा बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। जिस पर भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनों लोक नापकर राजा बलि के अभिमान को चकनाचूर कर बलि को पाताल लोक भेज दिया। कहते हैं एक बार बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को प्रसन्न कर रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। जिसके बाद भगवान राजा बलि के द्वारपाल बन गए। वहीं माता लक्ष्मी जी इस बात को लेकर परेशान रहने लगी और देव ऋषि नारद जी से सहायता ली। जिसके बाद माता लक्ष्मी जी ने श्रावण मास की पूर्णिमा को राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर भगवान विष्णु को बदले में उनसे मांगकर उन्हें वहां से मुक्त कराया। कहते हैं कि, श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था।
ऐतिहासिक प्रसंग -(Raksha Bandhan)
1 – पुराणों में रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर कई मान्यताएं हैं। वहीं इतिहास के पन्नों में भी इस पर्व से जुड़ी कई कहानियां प्रचलति है। इन्हीं में सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व मुग़ल सम्राट हुमायूँ हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चितौड़ राज्य पर हमला करने की सूचना दी। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर चितौड़ राज्य की रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने भी रानी कर्णावती के द्वारा भेजी राखी और याचना का मान रखते हुए मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध युद्ध किया और रानी कर्णावती के राज्य की रक्षा की।
2- रक्षाबंधन को लेकर एक और अन्य प्रसंग भी इतिहास के पन्नो में अंकित है। कहा जाता है कि, सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पोरस को राखी बाँधकर अपना मुँह बोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पोरस ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया था।
इस लेख में सम्मलित कहानियां लोक मान्यताओं, दंतकथाओं और जनश्रुतियों पर आधारित है। WeUttarakhand किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।