69th National Film Awards: उत्तराखंड में पलायन की पीड़ा किसी से छिपी नहीं है। पलायन के चलते गांव के गांव खाली हो चुके हैं। वर्षों पहले ताले पड़ चुके मकान खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। वहीं पलायन के इस दर्द को एक घंटे की फिल्म में कैद करती टिहरी जिले की सृष्टि लखेड़ा ने प्रदेश का नाम रोशन किया। मुंबई में बनी फिल्म ‘एक था गांव’ को 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला।
पहाड़ की जीवनशैली, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों को कैप्चर कर दिखा पाना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन, उत्तराखंड के टिहरी जिले के कीर्तिनगर ब्लॉक के सेमला गांव की रहने वाली 35 साल की सृष्टि लखेड़ा ने पलायन के पीछे छुपे दर्द और मजबूरी को इस कदर दिखाया की आज फिल्म राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की श्रेणी में जगह बना चुकी है। दरअसल, 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा हुई, जिसमें उत्तराखंड की बेटी सृष्टि लखेड़ा की फिल्म ‘एक था गांव’ को बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला है। सृस्टि ने इस फिल्म का प्रोडक्शन और निर्देशन का कार्यभार संभाला था।
बता दें, गढ़वाली और हिंदी भाषा में बनी ये फिल्म इससे पहले मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमेज (मामी) फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में जगह बना चुकी है। सृष्टि की इस फिल्म ने देश-विदेश में रहने वाले उत्तराखंड के प्रवासियों के मन में पहाड़ की यादों को तारो तजा कर दिया।
सृष्टि का परिवार ऋषिकेश में रहता है। सृष्टि के पिता बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. के एन लखेड़ा ने बताया, सृष्टि करीब 13 साल से फिल्म लाइन में कार्य कर रही हैं। उत्तराखंड में पलायन की पीड़ा को देखते हुए सृष्टि ने यह फिल्म बनाई। पहले उनके गांव में 40 परिवार रहते थे और अब मात्र 5 , 7 परिवार ही बचे हैं। लोगों को किसी न किसी मजबूरी से गांव छोड़ना पड़ा। इसी उलझन को उन्होंने एक घंटे की फिल्म के रूप में पेश किया है। फिल्म के दो मुख्य पात्र हैं। 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय किशोरी गोलू।”