Sri Dev Suman: श्रीदेव सुमन उत्तराखंड की धरती के एक ऐसे महान अमर बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सपूत का नाम है, जो एक लेखक, पत्रकार और जननायक ही नहीं बल्कि टिहरी की ऐतिहासिक जनक्रांति के भी महानायक थे। मात्र 28 वर्ष 2 महीने की अल्पायु में ही अपने देश के लिए शहीद होने वाले अमर सेनानी जननायक श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि 25 जुलाई को मनाई जाती है। इस महान वीर सपूत ने टिहरी रियासत की कुनीतियों के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने टिहरी जन क्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन की पुण्य तिथि पर उनका भावपूर्ण स्मरण कर श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि टिहरी जनक्रांति के नायक श्रीदेव सुमन जी देश के महान सपूत थे, मातृभूमि के प्रति आपका अतुलनीय प्रेम एवं आपके ओजस्वी विचार हमें सदैव प्रेरणा प्रदान करते रहेंगे।
महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन जी की पुण्यतिथि पर उनका भाव पूर्ण स्मरण किया एवं उनके चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। टिहरी जनक्रांति के नायक श्रीदेव सुमन जी देश के महान सपूत थे, मातृभूमि के प्रति आपका अतुलनीय प्रेम एवं आपके ओजस्वी विचार हमें सदैव प्रेरणा प्रदान करते… pic.twitter.com/nBiMK2PQap
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) July 25, 2023
श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस (पुण्यतिथि) को टिहरी में “सुमन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। आज उनका 79 वां बलिदान दिवस है। बता दें इस क्रांतिकारी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले की बमुण्ड पट्टी के ग्राम जौल में 25 मई,1916 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरिराम बड़ोनी और माता जी का नाम श्रीमती तारा देवी था। इनके पिता श्री हरिराम बडोनी जी अपने इलाके के लोकप्रिय वैद्य थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव और चम्बाखाल में हुई और 1931 में टिहरी से हिन्दी मीडियम की परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने विद्यार्थी जीवन के प्रारम्भिक काल से ही श्रीदेव सुमन गांधी जी के देशभक्तिपूर्ण विचारों से बहुत प्रभावित थे।
सन् 1930 में जब वह देहरादून गये थे तो सत्याग्रही जत्थों को देखकर वे उनमें शामिल हो गये, ब्रिटिश शाशकों के खिलाफ चल रही नारेबाजी को देख पुलिस बल फ़ौरन पहुंच गया और भीड़ को भगाने लगा। अफरा-तफरी के माहौल में एक बच्चा निडर खड़ा रहा और निर्भीकता के साथ ब्रिटिश शाशकों के खिलाफ नारेबाजी करता रहा। बच्चे के इस अदम्य साहस को देख पुलिस भी हैरान रह गई और बच्चे को भागने का मौका दिया लेकिन सुमन वहां से नहीं भागे जिसके बाद उनको 14-15 दिन की जेल भी हुई। सन् 1931 में वो देहरादून गये और वहां नेशनल हिन्दू स्कूल में अध्यापकी करने लगे और उसके बाद दिल्ली चले गए। पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने ’रत्न’,’ भूषण’ और ’प्रभाकर’ परीक्षायें उत्तीर्ण की फिर हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ’विशारद’ और ’साहित्य रत्न’ की परीक्षायें भी उत्तीर्ण की।
जनता की क्रियात्मक सेवा करने के उद्देश्य से 1937 में उन्होंने दिल्ली में “गढ़देश-सेवा-संघ” की स्थापना की जो बाद में ’हिमालय सेवा संघ’ के नाम से विख्यात हुआ। 1938 में जब वह गढ़वाल भ्रमण पर गये और जिला राजनैतिक सम्मेलन, श्रीनगर में सम्मिलित हुये तो इसी अवसर पर वे पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में आ गये और उन्होंने जवाहर लाल नेहरु को गढ़वाल राज्य की दुर्दशा से परिचित करया और यहीं उन्होंने गढ़वाल राज्य की एकता का नारा भी बुलन्द किया।
श्री देव सुमन ने टिहरी के राजा बोलंदा बद्रीनाथ से क्षेत्रवासियों के लिए पूरी आजादी की मांग की थी जिससे नाराज होकर राजा ने उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया तथा पुलिस ने 27 दिसम्बर, 1942 उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जिसके बाद जेल में उन्हें काफी प्रताड़ना दी गई। उन्हें इस तरह का खाना दिया जाता था जो खाने लायक नहीं होता था जिससे तंग आकर उन्होंने अनशन शुरू कर दिया। उन्होंने 209 दिनों के कैद की कठोर यातना सही और 84 दिन तक लगातार अनशन किया जिसके बाद 25 जुलाई, 1944 को लगभग इस 28 वर्षीय अमर सेनानी नौजवान ने अपनी जन्मभूमि, अपने देश, अपने आदर्श की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
अपनी जन्मभूमि के प्रति ऐसी अपार श्रद्धा तथा बलिदान की भावना रखने वाले उत्तराखंड के इस महान् स्वतंत्रता सेनानी,अमर शहीद श्री देव सुमन जी का जीवन दर्शन और उनके क्रांतिकारी विचार वर्त्तमान संदर्भ में भी आज बहुत प्रासंगिक हो गए हैं। उत्तराखंड के इस महान् क्रांतिकारी के देशभक्तिपूर्ण जीवन मूल्यों को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
“सुमन सौरभ” नाम से प्रकाशित उनकी कविता “जननी जन्म भूमि”
जिस जननी के शुचि रजकण से,
तन मन है यह जीवन है !
जिसके निस्सीम अनुग्रह से,
मिलता उर को नित भोजन है !
शुभ स्नेहमयी जिस गोदी में,
विश्राम हमें मिलता नित है !
जिस राष्ट्र ध्वजा के तले अहा,
बन मोदमयी खिलता चित है !
वह प्रेम की मूर्ति मनोरम हां,
सुख शांति से हीन अहो अब है !
मुख मंजुल कान्तिविहीन बना,
उसको सुख हाय मिला कब है