Gangnani: कलिंद पर्वत से निकलने वाली यमुना नदी भारत के पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है। जिसका संगम प्रयागराज में गंगा के साथ होता है। यहीं से गंगा और यमुना एक दूसरे से मिलकर गंगासागर तक का सफर तय करती है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन दो पवित्र जलधाराओं का संगम प्रयागराज से पहले उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित बड़कोट के ‘गंगनानी’ नामक धार्मिक स्थल में माना जाता है।
यमुना नदी के तट के किनारे भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली कहे जाने वाले इस कुंड से गंगा की धारा निकलती है जो पास में ही यमुना और केदार गंगा के साथ संगम कर त्रिवेणी बनाती है। यह प्राचीन कुंड यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बड़कोट से करीब 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
वसंत पंचमी में होता ‘कुंड की जातर’ का मेला
प्राचीन समय से ही स्थानीय लोगों में इस प्राचीन कुंड को लेकर अटूट आस्था रहती है। जिसके चलते लोग यहां अपने कुल के देवी-देवताओं को स्नान के लिए यहां लाते हैं। हालांकि इस जल को लेकर अभी तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है लेकिन इस कुंड में मिलने वाले जल की प्रवृत्ति पूरी तरह से गंगा जैसी है यदि गंगा में जल स्तर कम होगा तो कुंड में भी पानी का जल स्तर भी काफी कम हो जाता है। इसी धार्मिक महत्व के चलते वर्षों से यहां ‘वसंत पंचमी’ के पावन पर्व ‘कुंड की जातर’ का आयोजन भी किया जाता है। जिसे गंगनानी वसंतोत्सव मेले के रूप में मनाते हैं।
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यह है धार्मिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि गंगनानी के निकट स्थित थान गांव में भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि की तपस्थली थी, जहां ऋषि तपस्यारत थे। यहां पूजा-अर्चना के लिए ऋषि जमदग्नि हर रोज उत्तरकाशी से गंगाजल लेकर आया करते थे और जब वे वृद्ध हुए तो उनकी पत्नी रेणुका पूजा के लिए गंगाजल लाया करती थी। कई कोस दूर गंगाजल के लिए गंगाघाटी में जाना पड़ता था। जमदग्नि ऋषि मंदिर के पुजारी शांति प्रसाद डिमरी बताते हैं कि बड़कोट में रेणुका की बहन बेणुका का पति राजा सहस्त्रबाहु जमदग्नि ऋषि से ईष्या करता था तथा गंगाजल लेने गंगाघाटी में जाते हुए रेणुका को सहस्त्रबाहु परेशान करता था। जिस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तप के बल से गंगा भागीरथी की एक जलधारा को यमुना के तट पर स्थित गंगनानी में ही प्रवाहित करवा दिया। तब से यहां इस प्राचीन कुंड से गंगा की जलधारा अविरल प्रवाहित हो रही है।
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