Struggle Story : दुनिया इस वक्त कोरोना के संकट का सामना कर रही है। वहीं भारत में भी अब तक कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा एक लाख पार कर गया। कई देशों में तालाबंदी जारी है। हर गुजरते दिन के साथ दुख, दर्द, बेबसी, बहादुरी, साहस, बेबसी और ऊंचे इरादों की कहानियां लेकर इतिहास रचा जा रहा है। ऐसी ही एक संघर्ष से भरी कहानी है ज्योति की।
महज 13 साल की ज्योति इस वक्त पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। पूरे देश में लोग ज्योति की खूब प्रशंसा कर रहे हैं। उसकी प्रशंसा होना जायज भी है, आखिर उसने जो किया वह सबके लिए संभव नहीं है। कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण, कई लोग अपनी जान जोखिम में डाल लंबी दूरी तय कर अपने गृह प्रदेश की ओर पैदल ही रुख कर रहे हैं। ऐसी ही एक संघर्ष भरी कहानी है ज्योति की, जो दरभंगा जिले के सिरहुलिया गाँव में रहने वाली है।
ज्योति ने अपना दर्द बयान करते हुए बताया कि हमारे पास खाने-पीने के लिए पैसे नहीं बचे थे। किराया नहीं देने पर कमरे के मालिक ने तीन बार बेदखल करने की धमकी भी दी थी। गुरुग्राम में मरने से अच्छा था कि रास्ते में ही दम तोड़ दिया जाए। इसलिए हम अपने बीमार पिता से कहा कि चलिए हम आपको साइकिल से ले चलेंगे।
लेकिन पापा नहीं मान रहे थे फिर हमने जबरदस्ती की और आखिरकार वह साइकिल से चलने के लिए सहमत हो गए।ज्योति अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बिठाकर हरियाणा के गुरुग्राम से अपने घर दरभंगा के लिए रवाना हुई। इस दौरान रास्ते में कई दिक्कतें आईं, लेकिन ज्योति ने हिम्मत न हारते हुए हर बाधा को पार किया। कई बार ज्योति को खाना भी नहीं मिलता था। रास्ते में कहीं, कुछ लोगों ने उन्हें पानी पिलाया और कहीं किसी ने खाना खिलाया। लेकिन ज्योति ने हार नहीं मानी।
Struggle story : साइकिल पर जाना एक कठिन यात्रा थी लेकिन कोई और रास्ता नहीं था
ज्योति ने बताया कि ऐसी स्थिति में उसके पास साइकिल के अलावा और कुछ नहीं था। हालाँकि, बिहार आने के लिए, उनके पिता ने एक ट्रक वाले से बात की। उसने दोनों लोगों को घर पहुंचाने के लिए बहुत अधिक पैंसे की मांग की। ज्योति ने बताया कि पिता के पास उतना पैंसा नहीं था। इसलिए उन्होंने साइकिल से घर आने का फैसला किया। पिता ने भी साथ दिया। गुरुग्राम से दरभंगा तक साइकिल से यात्रा करना बहुत मुश्किल था। इसके बावजूद हमारे पास और कोई चारा नहीं था।
लगभग 1200 किमी की कठिन यात्रा
ज्योति ने बताया कि उसने 10 मई को अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से चलना शुरू किया और 15 की शाम को घर पहुंची। इस दौरान उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। ज्योति ने कहा कि भगवान की कृपा से हम अपने घर पहुंचे। गाँव पहुँचने पर इस लड़की की लोगों ने बहुत प्रशंसा की। लोगों ने पिता और बेटी दोनों को गाँव की एक लाइब्रेरी में रखा, जहाँ दोनों का मेडिकल चेकअप होगा, जिसके बाद दोनों को 14 दिनों के लिए क्वैरैंटीन में रखा जाएगा।