हर साल आने वाली नारद जयंती आज यानि 8 मई को है। नारद मुनि को ब्रह्मा का मानस पुत्र माना गया है। देवर्षि नारद भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त हैं और उन्हें भगवान के संदेश वाहक के रूप में जाना जाता है। पुराणों के अनुसार हर साल ज्येष्ठ के महीने की कृष्णपक्ष द्वितीया को नारद जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह जयंती आठ मई को मनाई जा रही है, इसी उपलक्ष्य में आज हम आपको देवर्षि नारद के जन्म से जुड़ी कहानी बताने जा रहे हैं।
पुराणों के अनुसार नारद मुनि भगवान ब्रह्मा की गोद से पैदा हुए थे। जिसके लिए देव ऋषि नारद को बहुत तपस्या करनी पड़ी थी। कहते हैं कि नारद मुनि पूर्व जन्म में गंधर्व कुल में पैदा हुए थे। तब उनका नाम ‘उपबर्हण’ था, वह बहुत सुंदर थे। उपबर्हण को अपनी सुंदरता पर बहुत अभिमान हो गया। एक बार, कुछ अप्सराएँ नृत्य करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने की कोशिश कर रही थीं। तब महिलाओं के भेष में ‘उपबर्हण’ (नारद) वहां आए। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा को नारद जी की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उन्हें श्राप दिया कि वह ‘शूद्र योनी’ में जन्म लेंगे। इस श्राप के कारण, ‘उपबर्हण’ का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ और पांच वर्ष की आयु में ही उनकी माता की मृत्यु हो गई।
कहा जाता है कि मां की मृत्यु के बाद उस बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। एक दिन जब वह बच्चा एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठा था, तब उसे भगवान की एक झलक मिली। इसके बाद, परमेश्वर को जानने और उन्हें देखने की उसकी इच्छा जागृत हुई।निरंतर तपस्या करने के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगा। अपने अगले जन्म में यही बालक ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कहलाए और पूरे ब्रह्मांड में नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।