देश में लॉकडाउन के दौरान सड़क हादसों में न जाने कितने प्रवासी मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी है। ‘माँ, मैं अभी आता हूँ’ छह साल का कृष्णा इतना कहकर अभी लघुशंका के लिए अभी कुछ कदम चला ही था कि पीछे से आ रहे एक लोडर ने ऑटो को टक्कर मार दी जिसमें उसके माता-पिता बैठे थे। कृष्णा अब इतनी बड़ी दुनिया में अकेले हैं। वह अपने ऑटो चालक पिता अशोक चौधरी और माँ छोटी के साथ हरियाणा के झज्जर से बिहार के दरभंगा के लिए रवाना हुआ था। जब ऑटो में तेल खत्म हो गया, तो अशोक अपने साथ लेकर निकले तेल को टैंक में डालने लगे। जब आगरा एक्सप्रेसवे पर उन्नाव के पास दुर्घटना हुई और कृष्णा के सामने उसके माता-पिता की मौत हो गई।
Auraiya Accident: कोरोना संकट के बीच एक भीषण सड़क हादसे ने ली 24 लोगों की जान और 35 हुए घायल
अनाथ कृष्ण अब किसको जिम्मेदार ठहराए । कोरोना तो बात करने से रहा। उसका अपना प्रदेश बिहार उसके माता-पिता को आजीविका प्रदान नहीं कर सका और हरियाणा उन्हें संभाल नहीं सका। इस घटना के अलावा, शनिवार को औरैया में 26 अन्य मजदूरों सड़क हादसे की बलि चढ़ गये। मजदूर सिर्फ राजनीति का मोहरा हो गए हैं। हर राज्य उन्हें अपने यहां से खदेड़ रहा है। एक बार मानवता को भुला भी दिया जाए तो भी कोई राज्य यह नहीं सोच पा रहा है कि जिस उद्योग को चलाने का वह दावा कर रहा है वह बिना मजदूरों के कैसे चलेगा।