दुनियाभर में फैल रहे कोरोना वायरस के फैलाव के बीच सोमवार को इतिहास में पहली बार अमेरिकी तेल की कीमत में सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली। यह अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) के लिए अब तक का सबसे बुरा दिन साबित हुआ। अंतरराष्ट्रीय बजार में अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट कच्चा तेल का भाव गिरकर 0 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंच गया। बता दें कि 1946 के बाद इस तरह की गिरावट पहली बार देखने को मिली है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पहले दिन में सोमवार को बाजार खुलने पर भाव यह 10.34 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था। जो कि 1986 के बाद इसका सबसे निचला स्तर था।
दरअसल, मई डिलीवरी के सौदे के लिये मंगलवार अंतिम दिन है और व्यापारियों को भुगतान करके डिलीवरी लेनी थी। लेकिन मांग नहीं होने और कच्चा तेल को रखने की समस्या के कारण कोई डिलीवरी लेना नहीं चाह रहा है। यहां तक कि जिनके पास कच्चा तेल है, वे पेशकश कर रहे हैं कि ग्राहक उनसे कच्चा तेल खरीदे साथ ही वे उसे प्रति बैरल 3.70 डॉलर की राशि भी देंगे इसी को कच्चे तेल की कीमत शून्य डॉलर/बैरल से नीचे जाना कहते हैं।
क्या भारत में सस्ता होगा तेल
जी नहीं, भारत में इससे पेट्रोल के दाम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 1 अप्रैल को पेट्रोल का बेस प्राइस 27 रुपए 96 पैसे तय किया गया। इसमें 22 रुपए 98 पैसे की एक्साइज ड्यूटी लगाई गई। 3 रुपए 55 पैसा डीलर का कमीशन जुड़ गया और फिर 14 रुपए 79 पैसे का वैट भी जोड़ दिया गया। अब एक लीटर पेट्रोल की कीमत 69 रुपए 28 पैसे हो गई। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल भले ही सस्ता हो जाए, लेकिन भारत में पेट्रोल की कीमत पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
क्या है गिरावट का कारण
कोरोना वायरस संकट की वजह से दुनियाभर में घटी तेल की मांग के चलते इसकी कीमतें लगातार गिर रही हैं।
जिसके चलते खरीदार तेल लेने से इनकार कर रहे हैं। खरीदार कह रहे हैं कि तेल की अभी जरूरत नहीं, वहीं, उत्पादन इतना हो गया है कि अब तेल रखने की जगह नहीं बची है। कच्चे तेल की मांग घटने और स्टोरेज की कमी इसका मुख्य कारण बताया जा रहा है। आपको बता दें कि अब से चार महीने पहले डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल अपने उच्चतम स्तर पर था। जनवरी के महीने में डब्ल्यूटीआई के दाम 66 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा थे।